मन का गुण-धर्म क्या है?

मन के गुण-धर्म इस प्रकार है:-
मन तर्कनिष्ठ है।
दो विपरीत शब्द युग्म में मन का तर्क कार्य करता है तथा विचार का जन्म होता है।
दो विपरीत शब्द युग्म में मन विचार को उत्पन्न कर देता है।
दो विपरीत शब्द युग्म में मन उपस्थिति होता है।
दो विपरीत शब्द युग्म में मन विचार को उत्पन्न करता है।
मन आधा आधा दीखाता है।
बदलाव मन का गुण-धर्म है।
भ्रम ही मन है।
अलग अलग कर देखना मन का गुण-धर्म है।
दो विपरीत शब्द युग्म में से मन एक तरफ को बचाता है।
मन एक को दो दीखाता है। इससे संसार प्रकट होता है।
मन दो पर आश्रित है। दो है तो मन है।
एक है तो मन का क्षय होता है।
दो विपरीत शब्द युग्म मध्य में मन का लय हो जाता है।
दो विपरीत शब्द युग्म के एक पक्ष पर मन का हो जाना स्वाभाविक है।
दो विपरीत शब्द युग्म के मध्य बिंदु पर मन का क्षय हो जाता है।
मन की व्यवस्था प्रणाली में, मन को दो करके देखने की गुण-धर्म है।



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