सचेतन मन
सचेतन मन (Conscious Mind) ही समस्या की जड़ है।मनुष्य को समस्या उत्पन्न करने की कला सचेतन मन के द्वारा बड़े ही आसानी से कर लेते है। भौतिक जगत में, सचेतन मन के उपयोग की आवश्यकता होती है। जिससे भौतिक आवश्यकताओं का प्रबंधन आसानी से संपन्न कर लेता है। क्योंकि भौतिक जगत में समस्या और समाधान की पद्धति को प्रयोग करके भौतिक जगत में विकास और विस्तार संभव हो जाता है। यह पद्धति भौतिक जगत के शोध, अध्ययन और विकास से विस्तार को स्थापित किया जाता है।
समस्या सचेतन मन के द्वारा स्थापित नियमो का पालन नहीं हो पाने पर उत्पन्न हो जाता है।
सचेतन मन (Conscious Mind) के लक्षण है:- क्यो का प्रश्न ? ऐसा क्यों ? क्यो का जबान की खोज करना है। शिकायत करना, असंतोष प्रकट करना है। मैं, करना है, मैं और तू, प्रश्नों का भंडार, फर्क, तर्क, अन्तर, अलग-अलग, तोड़-फोड तेरा-मेरा, भेदभाव, उल्टा सीधा, चाहत, इच्छा, भिन्न-भिन्न, सचेतन मन के लक्षण हैं।
भटकता हुआ सचेतन मन [deflected conscious mind) के लक्षण है:- चाहत, मांग, अंजान इच्छा, ज्यादा मांगना, बार, बार सोचना, विचार से दर्द, बेचैनी और परेशानी हो जाती है।
वर्तमान से दूर है-आपका मन-भूत और भविष्य में भटक रहा है। उपाय: मन को मूल में लाना है।
मन विचार Create करता है। उसी विचार से आकर्शित होता रहता है और इस छोर से उस छोर तक भटकना रहता है। मन की प्रवृति भूत में तब जाती है जब भविष्य में नही है। अर्थात, लक्ष्य नहीं है। यह अल्पकालीन होता है और पूर्ण होने पर समाप्त हो जाता है और भविष्य में लक्ष्य पूर्ण और प्राप्त होने पर मन प्रवृत्त होकर भूल की ओर भटक जाता है।
मन को विचार चलाता है। विचार चलता है। विचार कहाँ से उठतें हैं? जीवन की परिभाषा, स्वयं की मान्यता और स्वयं के द्वारा बाध्य जगत से संज्ञानात्मक प्रक्रिया द्वारा ग्रहण होता है।
समाधान के लिये सलाह दी जाती है- आप फंस जाते हैं। यह उपाय कुछ थोडे समय या वक्त तक कारगर होता है।
"विचार उठे तो यह ज़बाब दिजियेगा, इस तरह का विचार आये तो इस तरह बता दीजियेगा, विचार को विचार को काटते रहियेगा, विचार को विचार को से लड़ाते रहियेगा, यहाँ कुछ देर के लिये राहत तो मिलता है, उठे हुये विचार शांत हो जाता है, यह सुख कुछ देर तक का ही होता है।"
इस समाधान जो अल्पकालीन राहत देता है, लेकिन बार-बार हर बार विचार उठ जाता है आज नहीं तो कल और दर्द, बेचैनी और परेशानी को बढ़ा ही देता है।
अज्ञानतावश, विचार अंतः स्थल में बैठा हुआ है। यह दुखी uncomfortable बना देता है। यह विचार हलचल पैदा कर देता है। सुख- दुःख (pair of opposites) वाले विचार घटना और परिस्थिति को जन्म देती है।
Inner alignment के साथ जीवन जीना है। अगर आप inner aligned है तब वह वहीं कार्य कर रहा जिस purpose के साथ उस व्यक्ति का का जन्म हुआ है। यह purpose व्यक्ति का create किया हुआ नहीं है बल्की, यह purpose प्राकृतिक है।
प्राकृतिक purpose का सीधा सादा सिद्धान्त अदृश्य प्रकृति को पता है। Purpose की प्रस्तुति मात्र से व्यक्ति परिचित मात्र हो पाता है। Purpose की परिचित प्रस्तुति स्वतः पूर्व निर्धारित purpose के अनुसार हो गया, हो रहा है, या होना है।
Inner alignment प्राकृतिक purpose से संज्ञानात्मक रूप में तालमेल स्थापित हो जाता है। इस स्थिति में, प्राकृतिक purpose के अनुसार व्यक्ति का जीवन सहज और प्रकृति के नियमानुसार सरलतापूर्वक, कुशलतापूर्वक सम्यावस्था को बनाये रखते हुए होना ही होना का भाव से ओत-प्रोत होता है। महज संकल्प उपस्थित विकल्पों में से प्रकट होकर व्यक्ति को जीवन संबंधित आवश्यक आपूर्ति को प्रदान कर देती है। भाव "होना है तो होना है" के माध्यम से आपूर्ति स्वतः ही आमंत्रित हो जाता है और संतुष्टी की पूर्णता प्राप्त हो जाता है।
सार, सचेतन मन और कार्य-कारण तथा संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से संतुलित कर व्यक्ति पूर्णता को प्राप्त कर लें।
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