शिव कौन हैं ? शिव का ज्ञान कैसे प्राप्त होता हैं ?
उ. शिव मानस तत्व, स्थिति और भाव है। शिव एक मात्र तत्व है। शिव की तीन स्थितियाँ प्रवृत्ति, सहज और कर्म है। शिव के तीन भाव इच्छा, ज्ञान और क्रिया है। मानस तत्व का स्थिति और भाव में सहज संतुलन ही शिव की अनुभूति हैं।
शिव की अनुभूति वहीं है जहाँ मन मस्तिष्क पर एकाग्र, सहज और केन्द्रित हो जाए।
शिव चिदानंद रूप में एक मात्र ऐसे तत्व हैं, जो स्वचेतन है और आपको जो आनंद की परम अनुभूति करा देते है। जिस क्षण आपका मन केंद्र मे स्थापित हो जाता है, उस क्षण आप अपने चारों ओर अद्भुत दृश्य देखते हैं। जब भी उत्सव होता है तो चेतना खो जाती है। चेतना के साथ उत्सव में गहरी विश्रांति ही शिव है। जब आप किसी समस्या का सामना करते हैं तो आप चेतन और जागरूक हो जाते हैं। सब कुछ ठीक होने लगता है और हम शांत होते हैं।
शिव अनुभूति में हम चैतन्य होते हुए भी शांत होते हैं। शिव ही सत्य है तथा शिव के साथ होने से ही सम भाव में सहज संभव है।
जो देखता है और जो दिख रहा होता है दोनों देखने पर प्रभावित होते हैं।
शिव के मनस पटल पर उपस्थित होने में चेतना आपके चारों ओर व्याप्त होती है। इस क्षण आप स्वयं चेतन होते हुये, आप स्व को देख रहे है। आप स्वयं देखने वाले, दिखने वाले दिखते हैं। *डॉट/DOT* मानसिक पटल पर *शिव* को अनुभव करना है।
*काश !!!* हम अपने *शिव* की खोज *डॉट/DOT* पर आसानी से कर पाते।
*शिव-तत्व* रूप में मानसिक पटल पर वहां होते हैं, जहां मन का विलय *मध्य-मूल* में होता है। यह वह क्षण है, जब हम स्वयं में स्थित होकर केंद्रित हो जाते हैं, और अनुमति में अनुभूति होती हैं कि हम सब लोग सहज ही एक है और हर जगह हम स्वयं स्वतः ही मौजूद होते है।
शिव विरुपाक्ष है, अर्थात, जो निराकार है, फिर भी सब देखते है। सापेक्षता का सिद्धांत के अनुसार, जो देखता है और जो दिखता है, दोनों दिखने पर प्रभावित होते हैं। शिव हमारे चारों ओर है और हमें देख रहे है। यह शिव तत्व का पूरा परिवेश हमारे मानसिक पटल पर विराजमान है। वह द्रष्टा, दृश्य और दृष्टित है। यह निराकार शिव तत्व देने वाला तत्व है। *शिव-तत्व* का अनुभव करने पर उत्सव में जागरूकता के साथ गहरा विश्राम है। जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, तब सचेत व जागृत हो जाते हैं। जब सब कुछ ठीक होता है, तब हम विश्राम में रहते हैं।
*शिव-शक्ति* के स्वरूप मे, स्थिति और भाव अनुसार मानसिक पटल पर वहाँ हैं, जहां से सब कुछ विचार रूप में जन्म ले रहा है। जो इसी क्षण मानसिक पटल को घेरे हुए है।
*शिव-शक्ति* के दृष्टि से सारी सृष्टि विलीन हो जाती है। इस सृष्टि में दृष्टि द्वारा जो भी रूप देखते हैं, सब शिव की दृष्टि का ही रूप है। इसकी दृष्टि में सारी सृष्टि व्याप्त है। न वह कभी जन्मा है न ही उसका कोई अंत है। वह अनादि है।
*शिव तत्व* पांच तत्व से निर्मित हैं- जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। इन पांचों तत्वों के समन्वय से शिव तत्व का ज्ञान प्राप्त होता हैं।
शिव की शक्ति के मानसिक पटल पर मूल स्थिति की वजह से हम किसी भी विकृति के बिना, कुशलता से रहते हैं तथा क्रोध, चिंता, दुख जैसी सब नकारात्मक मन की वृत्तियों का नाश होता है। हमें तनाव, चिंता और दुख नही होता है, हम सरल, सहज और सफल होते है।
*डॉट/DOT* पर *शिव तत्व* की सच्ची सिद्धी प्राप्त होगी। मानसिक पटल पर अंकित हर काल प्रदोष काल होगा।
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