मन और शरीर
एक भौतिक शरीर है, तो एक है मानसिक शरीर अर्थात् मन और एक सूक्ष्म शरीर अर्थात् चेतना। महत्त्व आंतरिक शरीर अर्थात् मन की साज-सज्जा का है।
प्र. मन को कैसे संवारें? वहां ऐसा कौन सा कबाड़ है जिसे हटाना जरूरी है?
उ. वास्तव में हमारे मन में समाए हुए दूषित मनोभाव या नकारात्मक विचार ही कबाड़ के समान हैं, जिन्हें वहां से हटाना बेहद जरूरी है। अनुपयोगी घातक विचारों को भी मन से बाहर निकाल फेंकना अनिवार्य है, क्योंकि वही अनुपयोगी विचार हमारे बाह्य और आंतरिक सौंदर्य अर्थात् संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास में बाधक होते हैं।
बेकार चीजों की तरह बेकार के काम तथा निरर्थक संबंध भी हमारे कीमती समय को नष्ट करते हैं तथा हमारी कार्य कुशलता को बाधित करते हैं और इन सबका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है । बेकार के काम तथा निरर्थक संबंधों का कारण भी हमारे असंतुलित अथवा अनुपयोगी घातक विचार ही होते हैं।
प्रभावशाली व्यक्तित्व का विकास कर जीवन में सफलता पाने के लिए बेकार की चीजों से छुटकारा पाना अनिवार्य है चाहे वे वस्तुएं हों, कार्य हों, संबंध हों अथवा मनोभाव। बेकार के मनोभावों से छुटकारा पाने के लिए पुन: अनिवार्य है।
हमारे शरीर में जितने भी रोग होते हैं, वे प्राय: मन की गलत कंडीशनिंग के कारण ही होते हैं। बाद में ये रोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रमित होते रहते हैं।
पहले रोगों का स्वरूप मनोदैहिक ही होता है, अर्थात बीमारी पहले मन में आती है और फिर शरीर पर। और बाद में ये बीमारियां अगली पीढ़ी में भी होनी प्रारंभ हो जाती हैं। अत: मन को ठीक करके बीमारी के भय से मुक्त होकर ही शरीर को स्वस्थ किया जा सकता है। और यह संभव है *डॉट/DOT* के द्वारा। हर मानसिक कार्य के मूल में भी एक बीज होता है और वह है विचार। *डॉट/DOT* ही तन और मन दोनों का उपचार है।
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