होली क्या है?

उ. *होली* का मतलब हो-ली। अर्थात मन ने यात्रा कर आत्मा से हो-ली। यह हो-ली मन, बुद्धि  और आत्मा का मिलान है। 

जीव/मनुष्य को अनुभूति में अन्तः करण में सूक्ष्म स्तर पर अनुभव होता है।

हो-ली मानसिक रंग-मंच पर घटित भाव रूप में मन, बुद्धि और आत्मा के मिलन की वजह से उत्पन्न उमंग, आनंद और उत्सव है। यह भाव रूप में शरीर में उत्सव का वातावरण बन जाता है।आदिकाल से मनोयोग के रूप में अनुभव स्तर पर  यह पर्व  जीव को मनना चाहिए।

प्र. *फाल्गुन* मास क्या है? 

उ. फाल्गुन का मतलब है फल का गुण। 

मनुष्य द्वारा पूर्ण किये कर्म का फल के गुण के आधार पर अनुभव में अनुभूति होना तथा प्राप्त करना। 

कर्म और फल के संयोग से मन के दृष्टीकोण का पूर्णिमा के दिन अन्तः करण पर स्वतः ही घटित हो जाता है। 

इस दिन हम मन और आत्मा की सूक्ष्म यात्रा का मनोवैज्ञानिक परख कर संज्ञान प्राप्त कर सकते है।

यह व्यक्तिगत स्तर पर घटित होकर समाजिक स्तर पर फैलता है। दूसरों में भी परिणाम लाता है। अगर यह सहज रूप से अंतःकरण पर स्फुरित होकर घटित  हो जाये तब यह नित्य दिन प्रति दिन जीवन उत्सव, आनंद और उल्लास सहज ही मुख-मण्डल पर प्रकाशित होगा और स्वम् को परिवार कुटुंब और समाज में सहयोग का वातावरण उपस्थित होता रहेगा। जीवन में निरन्तरता में क्षण प्रति क्षण मार्ग  प्रशस्त होता रहेगा।

आप स्वम् से प्रश्न करे?

क्या  मन+आई  आत्मा से   हो-ली मिलाने?

कैसे मन+आई आत्मा से हो-ली मिलाने?

प्र. *होली* को सहज भाव में मानसिक पटल पर कैसे मनाते है?

उ. *होली* को कवि ने बताया है:-

बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले। 

जो आ जावे सहज में, ताहि में चित दे।।

अर्थात बीत गई अप्रिय बातों तथा घटनाओं को भूल जाओ और आगे के लिए चिंता करो। अब सतर्क तथा सावधान रहो, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो। भूत एवम् भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान में जो भी हाथ में है, उसी को एकाग्रचित्त होकर सफल और सुखद बनाओ। 

*होली* पर्व भी हमें बीती बातों को 'हो-ली' यानी हो चुकी, बीत चुकी -जैसा समझने की प्रेरणा देती है। लेकिन होली को बीती यानी अतीत को विस्मृत हम तभी कर सकते हैं, जब हमारा वर्तमान उत्तम और समृद्ध हो, जिसमें उज्जवल भविष्य के चित्र समाए हों। इस के लिए हमें होली शब्द के एक अन्य अर्थ को भी समझना होगा। 

*होली* मतलब सच्चे दिल से उसका हो जाना। उसका यानी किसका? -ईश्वर का हो जाना। हो-ली यानी अपना 'मैं' और 'मेरा' पन रूपी अहंकार को समर्पित कर स्वयं को न्यासी समझ सांसारिक कर्त्तव्य करते हुए जीवन व्यतीत करना। 

*डॉट/DOT* पर मानसिक पटल पर मन को सहज भाव में रखने से नम्रता आती है, अहंकार नष्ट होता है और हमारे भीतर मानवीय गुणों का विकास होता है तथा

यह स्वयं को और  संपर्क में आने वाले अन्य लोगों को भी सुख प्रदान करता है।

*होली* का अर्थ, यह भी हुआ कि हम मनुष्य अपने मन, वचन और कर्म से तथा तन-मन-धन से उस चेतन निराकार शक्ति के हो जाएं। 

*होली* में हम शक्ति के रंग में रंग जाएं।यह रंग शाश्वत है, अविनाशी है। यानी इस प्रकार जो खुशी मिलेगी, वह सदा बनी रहेगी, त्योहार के बीतने के साथ खत्म नहीं होगी।

*होली* में उस शक्ति से मिलन की मधुर स्मृति में योगाग्नि की होलिका में अपने अवगुणों, विकारों एवम् नकारात्मक संस्कारों को भस्म कर देती तथा अपने आचार, विचार और व्यवहार को सभ्य, सुसंस्कृत और सुखदायी बनाएं। 

*होली* में आत्मा के प्रति पूर्ण समर्पण, निष्ठा और अच्छे कर्म हमारा कवच बन कर हमें कष्टदायी परिस्थितियों से बचाएंगे।

*होली* का *डॉट/DOT* पर  ज्ञान प्राप्त करने से रूहानी प्रेम, पवित्रता, भाईचारा और वसुधैव कुटुम्बकम की संस्कृति को पुन: स्थापित कर सकते हैं। सतयुगी सभ्यता की नई संवत् का शुभारंभ कर सकते हैं। 

मानसिक पटल पर मन आत्मरंग संग होली घटित होती है।

होली मानसिक पटल पर घटित मनो घटना है। पहले सहज भाव होता है, फिर होली होती है, न कि पहले होली आई फिर सहज भाव आया। 

सहज भाव वही मानसिक पटल का भाव है, जिसमे भेदभाव नही होता है तथा जिसमें आत्मीय गुण इतना प्रगट हो की वह वैरभाव में से भी केवल सहज भाव को ग्रहण करे वैर को वहीं छोड़ दे। पदार्थ को ना ग्रहण करे बल्कि उसमें संलग्न सहज भाव को ग्रहण करे। होली की यही विशेषता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सहज भाव बिन कैसी होली।

होली तो रोज़ मनानी चाहिए और मन को प्रेम के रंगों से रंगते जाना चाहिए तभी तो जीवन में नयापन आयेगा ! 

हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम रोज़ बदलते रहे, कल जो हमारा व्यवहार था आज उससे और बेहतर हो, जो आदते हमें नीचे की ओर गिराती है वो दूर होती जाए ! 

असलियत में मन को सहज भाव में होना ही होली है, किसी से भी द्वेष न रहना ही होली है, हर पल सहज भाव में रहना ही होली है, बदला लेने की भावना को छोड़कर अन्दर से बदल जाना ही होली है ! हमारी वाणी में मीठास का बढ़ाना ही होली है ! 

मेरा सभी से प्रेम हो ! 

होली सहज होने का पर्व है। यदि प्रतिदिन सहज का भाव हमारे अन्दर है तो रोज़ ही होली है ! 

जैसे आज इस लेख को पढ़ते समय जैसे मन सहज भाव मे है वैसे ही हर रोज़ मन सहज भाव में रहे !

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट