मन का विज्ञान

मनुष्य के मनस् के अंत:स्थल पर अंत:करण द्वारा उद्गमित संज्ञान शक्ति का बहाव निरंतर होता रहता है। इस बहाव को स्थितब्रह्मप्रज्ञ ज्ञान और कला से संज्ञानात्मक निर्णय के मार्ग को दिशा देकर  सजीव जीवन को प्रशस्त करना है। 

स्थितब्रह्मप्रज्ञ ज्ञान और कला से मन पर नियंत्रण आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इस कला-कौशल को डाॅट नामक मनोयंत्र पर सीखें।

मन को हमें सहज रूप से सम में रखते हुए जीवन उद्देश्य को पूरा करना है। 

मन अंत:करण है। मन ज्योतिषीय प्रकाश के आकाश में पल्लवित, पुष्पित और प्रफुल्लित  होता है। 

मन ज्ञान स्वरूप में है। वह विवेक को समझता है। मन का सहज मार्ग प्रत्यक्ष, प्रशस्त और प्रवाहित दिशा में अग्रसरित होता रहता है। इस मन के स्वभाव के प्रवाह को साम्यावस्था में बनाए रखने हेतु ज्योतिषीय ज्ञान और विवेक की आवश्यकता होती है। मन को ज्योतिषीय प्रज्ञयता की आवश्यकता होती है। ज्योतिषीय प्रज्ञयता सहज स्वीकार होता है।

*।। मन का विज्ञान ।।*

प्र. मन का जीवनशैली से क्या संबंध है?

उ. किसी भी व्यक्ति का मन का विकास उसकी जीवनशैली को निर्धारित करता है। 

मन का विकास तब होता है जब व्यक्ति की समझ मानसिक पटल पर आधारित होती है। मन की विभिन्न अवस्था मानसिक पटल पर परिलक्षित होता रहता है। व्यक्ति के द्वारा समय-समय पर अपनाया जाता है। 

मन के विकास के अनुसार मनुष्य का जीवनशैली तीन प्रकार से *डॉट/DOT* पर व्यक्त होता है:-

*पहले* वो जो किसी भी प्रवृति में कल्पनाएं करते हैं और कठिनाईयों को जन्म देते हैं। यहां तक कि अपना काम शुरु होने से पहले और खत्म होने तक भी वो कुछ नहीं करते हैं। वो उन कारों के जैसे होते हैं जो बिना धक्का दिये शुरु नहीं होते। 

*दूसरे* तरह के लोग सरस की तरह के होते हैं। वो प्रेरित होकर शुरुआत तो करते हैं लेकिन दृढ़ता की कमी के कारण हार मान लेते हैं। 

*तीसरे* वो होते हैं जो जितना अधिक चुनौतियों और समस्याओं का सामना करते हैं, उतना ही अधिक अपने काम को पूरा करने के लिए प्रेरित होते हैं। 

आप जीवन को सफल बनाने के मंत्र पर ध्यान दें। *डॉट/DOT* पर शोध द्वारा प्राप्त *पाँच मंत्र* जीवनशैली को सफल बनाते है:-

1. अपने मन के लिए आप खुद ही जिम्मेदार होते हैं। 

2. जैसा आपका मन होता है, वैसे ही आपके विचार होते हैं। 

3. जैसे आपके विचार होते हैं, वैसे ही आप इस दुनिया को देखते हैं। 

4. जैसा आप इस दुनिया को देखते और इससे व्यवहार करते हैं, वैसा ही अनुभव आपको प्राप्त होता है। 

5. जैसा अनुभव आपको प्राप्त होता है, आपके जीवन की गुणवत्ता बिल्कुल वैसी ही होती है। 




मनोज्योतिषम् के संस्थापक पं प्रो.(डॉ.) ए. के. मिश्र है। पंडित मिश्र ने ज्योतिष, गणित और मनोविज्ञान का पारंपरिक रूप से वंशानुगत गुणों के आधार पर  ग्रहण किया है।

 इस संस्थान की स्थापना सन् 1992 के दिनांक 8 जुलाई को प्रयागराज में हुआ था। 

पूर्णतः मनोज्योतिषियः वैदिक काल में विकसित वैज्ञानिक विधि  के प्रयोग के द्वारा समाधान प्रदान करते है।

इस संस्थान का उद्देश्य व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यावसायिक एवं व्यापारिक समस्या का समाधान मनोवैज्ञानिक और  ज्योतिषीय विधि के समायोजित विश्लेषण के आधार पर निर्णयन कर  निदान प्रदान किया जाता है।


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