मन को कैसे पहचानें?

 पिछले लेख में हम लोग ने जाना कि मन का व्यवहार व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण से निपटने के लिए मुख्य भूमिका में होता है और आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता प्रदान करता है। मन के व्यवहार को आसानी से मनो-यंत्र पर प्रक्षेपण (प्रोजेक्शन) प्रकरण (कंटेंट) के आलेख (स्क्रिप्ट) द्वारा जान सकते हैं। इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया विधि द्वारा व्यक्ति के व्यवहार को वैज्ञानिक विश्वास और दृढ़ता के साथ व्यवहार का वर्णन या चित्रण, व्याख्या या स्पष्टीकरण, पूर्व कथन करके भविष्यवाणी करना तथा मन का व्यवहार या मन के द्वारा व्यवहार को नियंत्रित करके प्रबंधन संभव होता है। इस अर्जित ज्ञान का वस्तुनिष्ठ तरीकों से अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) संभव है। इस लेख में, हम लोग इस प्रश्न, "मन को कैसे पहचाने?"का उत्तर को प्राप्त करेंगे। इस प्रश्न के उत्तर को प्राप्त करने के लिए मनोवैज्ञानिक सूत्रों का प्रयोग करना होता है।

पहला सूत्र है:- मन का व्यवहार के उद्दीपक (स्टीमुलस) एवं अनुक्रिया (रिस्पांस) के बीच साहचर्य/संबंध होता है। यह दोनों आंतरिक और बाह्य हो सकते हैं।

दूसरा सूत्र है:- कारण और प्रभाव संबंध व्यवहार परख गोचर और अंत:क्रिया के उपयोग से मन के व्यवहार द्वारा मन को पहचान सकते हैं।

तीसरा सूत्र है:- मन की पहचान काल्पनिक चिन्ह (पेंडुलम/ दोलन) का रुपाधार, मनोमापक पैमाना, प्रक्षेपण प्रकरण (कंटेंट) के आलेख (स्क्रिप्ट), साक्ष्य या प्रक्षेपण के आधार पर ही संभव है।

चौथा सूत्र है:- व्यक्तिगत मन की पहचान का परिणाम और निष्कर्ष सामूहिक प्रदत्त संग्रह का सांख्यिकीय विधियों एवं प्रक्रियाओं के उपयोग की सहायता से विश्लेषण करके काल्पनिक अनुमानित अवयवों की जांच करके तदनुसार निष्कर्ष निकाल करके तथा पूर्वकथन करके भविष्यवाणी करते हैं।

पांचवा सूत्र है:- मन की पहचान संबंधित कथन को सुदृढ़ करने या निष्कर्ष को पुष्टि करने के लिए प्रथम दृष्टया निष्कर्ष का पुनरीक्षण अनिवार्य है।

उपरोक्त बताए गए पंचसूत्रीय मंत्रों के द्वारा मन की पहचान मनोवैज्ञानिक की तरीके से आसानी से कर सकते हैं। 

सार, इस लेख में हम लोगों ने मन की पहचान करने के लिए पांच सूत्रीय मंत्रों बारे में जाना है। प्रत्येक मंत्र मनो-यंत्र पर आधार है। इन मंत्रों को याद रखना अतिआवश्यक है यह पांच-मंत्र मानो यंत्र के चरण हैं।

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