मानक शास्त्रीय शोध विधि द्वारा आध्यात्मिक दर्पण में दर्शन।

पिछले लेख में हम लोगों ने पढ़ा की की मन के दृष्टिकोण का प्रयोग न सिर्फ मन की स्थिति को संघात करता है, बल्कि स्वयं की स्थिति पर संघात करता है। जब हम लोग मन का दर्शन भौतिक जगत में के दर्पण में करते हैं।
इस लेख में हम लोग मन के दृष्टिकोण का प्रयोग आध्यात्मिक दर्पण में मन का दर्शन करते हुए जानेंगे और सीखेंगे कि किस प्रकार मेरा मन आध्यात्मिक दर्पण पर मेरी उपस्थिति का बोध कराता है।
आध्यात्मिक दर्पण और भौतिक जगत का दर्पण एक दूसरे से व्यक्ति द्वारा पसंद-विकल्प (प्रेफर्ड चॉइस) है। पसंद-विकल्प व्यक्ति के मन का प्राकृतिक गुण और धर्म है।
आध्यात्मिक दर्पण अंतःस्थल को दर्शाता है और भौतिक जगत का दर्पण बाह्य:स्थल को दर्शाता है।
इस लेख के संदर्भ में, जब व्यक्ति का पसंद-विकल्प आध्यात्मिक दर्पण होता है, तब इस परिस्थिति में मन के दृष्टिकोण का प्रयोग व्यक्ति स्वयं की स्थिति को अंत:स्थल रूपी दर्पण द्वारा मन की संपूर्णता को एकाकार कर स्वयं की स्थिति को विश्रांति, सहजता और आनंद विभोर करना है।
शास्त्रीय शोध विधि द्वारा यह स्थापित होता है कि हम लोगों में से कुछ लोग स्वयं के आध्यात्मिक अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करते हुए भी कठिन विधियों को ग्रहण नहीं कर पाते हैं और आध्यात्मिक स्थिति स्वयं को प्राप्त समयावधि में नहीं हो पता है। अर्थात, यह कुछ लोग अभ्यास की निरंतर पर कायम न रख पाने पर कामयाबी तक नहीं पहुंच पाते हैं।  
ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो कि एकाकी अभ्यास को पसंद करते हैं। इन लोगों को उसे आध्यात्मिक विधि की आवश्यकता है जो स्वाध्याय और अभ्यास स्वयं ही प्रयोग करके स्वयं की स्थिति को एकाकार कर प्राप्त आसानी से लेते है।
सार, आध्यात्मिक दर्पण पर मन के दृष्टिकोण के द्वारा व्यक्ति स्वयं की स्थिति को मन की संपूर्णता को एकाकार करके विश्रांति, सहजता और आनंद अनुभव करता है।

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