कर्म और नियति का प्रयोगिक सिद्धांत
जन्म से ही प्रत्येक मनुष्य के जीवन-कोष में कर्म और नियति में सामंजस्य बना हुआ रहता है। जिससे मन में उत्साह, उमंग और आनंद भरपूर होता है। कर्म और नियति में सामंजस्य होने पर समता कायम रहता है। क्रमबद्ध समय सारिणी अनुसार जीवन-पथ पर जीवन धारा का अग्रसारण होता रहता है।
इस क्रम में, जन्म से ही, इस वर्तमान जीवन में, मन की समता स्थिति में कर्म स्वत: ही नियति द्बारा निर्धारित दिशा में अग्रसरित होता रहता है।
आजकल के परिवेश में, सबसे बड़ी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक समस्या से प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में अपने जीवन को प्रभावित होने से नहीं रोक पा रहा है। दिन प्रतिदिन ग्रस्त रहता है।
जैसे-जैसे हमलोग जीवन के समय आयाम पर आगे बढ़ना शुरु करते हैं:- इसी क्रम में, धीरे-धीरे ध्यान बटना शुरू हो जाता है। ध्यान बंटाने के कारण कर्म और नियति में सामंजस्य बिगड़ना शुरू हो जाता है। फलस्वरूप, दिशा हीनता, भय, शोक, दुःख और अंतोगत्वा मानसिक और शारीरिक रोग की उत्पत्ति।
जीवन जीने की कला-कौशल सीखें और प्रफुल्लित होकर अपने अपने जीवन काल में "सामंजस्य प्रबंध" स्थापित कर जीवन-कोष से, सहज जीवन-यापन करते हुए, जीवन-फल प्राप्त करें तथा पूर्णतः के भाव को महसूस करें। साथ-साथ, इस जीवन को कृतार्थ करें।
कला कौशल सीखने का सुलभ स्थान:- संपर्क करें मनोज्योतिषम्
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