शोधार्थी का मनस शोध विचार की व्याख्या
पिछले लेखों में, हम लोग ने जाना कि मन क्या? क्यों और कैसा है? साथ-साथ विद्वानों द्वारा किये गये शोध के सहारे मन को जानने, समझने, और प्रयोग की व्याख्या को ज्ञानार्जन से अनुग्रहित हुये। पिछले लेखों को अध्ययन करने के साथ-साथ हम लोग के निम्न लिखित सूत्रों को प्राप्त किया है-
सूत्र- । मेरा मन उपस्थिति और गतिशीलता का बोध कराता है।
सूत्र-2 मन है तो मैं हूँ और इसलिये मैं मनुष्य हूँ।
सूत्र-3 मन की स्थिति को दृष्टिकोण के आधार पर जानते हैं।
सूत्र-4 दृष्टिकोण का आधार जगत (world) के चुनाव पर निभर करता है।
सूत्र-5 मन का आविर्भाव होता है।
सूत्र-6 मन व्यवहार में परिलक्षित होता है।
सूत्र-7 मनोवैज्ञानिक विधियों के प्रयोग के द्वारा मन का अध्ययन, अनुभवकृत अवलोकन एवम् निष्कर्ष प्राप्त करते हैं।
सूत्र-8 मन व्यवहार का आधार है।
सूत्र-9 मन के द्वारा व्यवहार वातावरण से ग्रहण (adopt कर सामंजस्य (adapt) और निपुण (adept )बनकर परिस्थितिसे निपट सकते हैं।
सूत्र-10 मन अंतर्निरीक्षणीय और प्रक्षेपणीय है।
सूत्र-11 मन को प्रक्षेपणीय विधि द्वारा प्राप्त प्रकरण (content) के आलेख (script) अध्ययन करके जानते हैं।
सूत्र-12 मन की पहचान पंच सूत्रीय मंत्रों के चरण को लगा करके ही संभव होता
सूत्र-13 मन तीन ताल बिन्दुओं पर कार्य करता है।
सूत्र-14 तीन ताल बिन्दुओं पर मन वर्तुलाकार डोलता है।
सूत्र-15 मन तीन ताल बिन्दुओं पर वर्तुलाकार डोलते हुयें साथ ही सोचने की प्रक्रिया चालू होती है और साथ-साथ विचार शब्दों के ताने-बाने से शब्दों से वाक्य बनता है।
उपरोक्त सूत्रों का आधार शोधार्थी ने वर्तमान शोध में पाश्चात्य विद्वानो द्वारा दिए गये सूत्रों और प्राच्य, ऋषियों द्वारा दिये गये सिद्धांतों को मिश्रण है। मिश्रण करके मन के विज्ञान को जन-जन के लाभार्थ हेतु प्रस्तुत किया गया है।इस शोध द्वारा अविष्कृत मनोयंत्र (डिमोअन पर्यवेक्षक पारदर्शिता) कहते हैं। आंग्ल भाषा में DIMOAN OBSERVATOR TRANSPARENCY कहते हैं या (DOT) से संबोधित करते हैं। इस अविष्कृत मनोयंत्र को मनोविज्ञान के पाश्चात्य एवं प्राच्य मनिषियों द्वारा सुक्षाये गये प्रयोगात्मक विधियों, प्रक्रियाओं और प्रणालीयो का बखूबी उपयोग किया गया है। जिससे मन का अध्ययन, अनुभूति और अनुभव आसानी से जन-जन भी कर पाये और जीवन में मनोविज्ञान का लाभ उठा पाये।
इस शोध के माध्यम से जन-जन का सामान्य ज्ञान मनो- विज्ञान में बढ़ाना ही है, बल्कि साथ-साथ एक दूसरे को सह- योग प्रदान करके मन के विज्ञान द्वारा हर एक मनुष्य प्राणी को सिखाना, समझाना और दैनिक जीवन में दक्ष होकर सहजा- वस्था में वास करते हुये खुद भी सहज और आसपास के सब लोग सहज में रहकर एक दूसरे से सजन्नता का परिचय देवें।
'मन' एक संप्रत्यय है। मन की संरचना में तत्व, अवयव कारक क्रिया, कार्य-कलाप और स्थितियों के सहयोग से है। इस विभिन्न प्रत्यये की संरचना और कार्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है। हालांकि प्रत्यय अपने -अपने लक्षण से भिन्न होते हुये भी मन के कार्य में अविरल सहयोग प्रदान करते रहते हैं। मन सामुहिक प्रत्ययों को सुव्यवस्थित करके कार्य के करता है। मन का कार्य संयोजक नियम (conjunctive rule) के द्वारा संयोजी प्रत्ययों के प्रासंगिक विशेषताओं के साहचर्यात्मक (associative) तथा स्वायत्त (autonomous पर होता है। जिससे प्रत्येक चरण तथा में भिन्न-भिन्न प्रकार की मानसिक अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रक्रियाये द्वारा भिन्न-भिन्न क्रियायें होती है। जिनसे मन का कार्य सतत चलता रहता है।
टिप्पणियाँ