मनुष्य क्यों भटका हुआ है?
उ. हां, मनुष्य भटका हुआ है। यह भटकाव और कुछ नहीं मात्र मानसिक अवस्था पर उपस्थित विचारों की विकृति है। यह विकृति मनुष्य को दुर्गुणी व्यक्ति बना देता है।
यह व्यक्ति अपने मानसिक कर्मों से अपने लिए तो विपत्ति निमंत्रित करता ही है , साथ ही देखने-सुनने वालों के मन में भी विक्षोभ पैदा करता है। वह उन्हें अकारण ही दु:खी करता है। दुर्घटनाओं की प्रतिक्रिया हर किसी पर भारी पड़ती है। इसलिए दुर्गुणी और दुराचारी व्यक्ति अपने और दूसरों के लिए अभिशाप बना रहता है। प्रकारान्तर से दूर-दूर तक का वातावरण उसके कारण आक्रोश और उद्वेग से भरने लगता है। यह विचार विभ्रम का ही दुष्परिणाम है कि शालीनता का राजमार्ग छोड़कर लोग अनाचार पर उतरते हैं और बहुत पाने के , जल्दी बटोरने के लालच में अपनी साख गंवा बैठते हैं। अविश्वासी लोगों को दरिदता और भर्त्सना का भाजन ही बने रहना पड़ता है। ऐसी दशा में लक्ष्मी उनके यहां टिके भी कैसे ? गलत ढंग से कमाया गया पैसा गुनाहों में खर्च होता है और प्रकृति के नियमानुसार भी बीमारी , मुकदमेबाजी , प्रतिशोध , ईर्ष्या , घृणा , तिरस्कार तथा अन्य अवांछनीय घटनाओं के माध्यम से वह सब कुछ गंवा बैठता है। कुविचार ही आर्थिक क्षेत्र के अनाचारों में परिणत होते देखे गए हैं।
मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिंब है। व्यक्तित्व विकास एवं भाग्य निर्माण में इन्हीं की महती भूमिका होती है। यदि मनुष्य *डॉट/DOT* पर सही चिंतन , तथ्य , तर्क और प्रमाणों की खोज करते हुए आप अपने लिए सही मार्ग अपनाए , तो *सहजावस्था* में जीवन जीते हुए अपने लिए प्रगति का पथ प्रशस्त कर सकते है और दूसरों के लिए भी उपयोगी हो सकते है। हम अपने विचार की खोज *डॉट/DOT* पर आसानी से कर पाते।
सफलता-असफलता , उन्नति-अवनति , सुख-दु:ख , शांति-अशांति आदि सभी मनुष्य के अपने विचारों पर निर्भर करते है। किसी भी व्यक्ति के विचार को *डॉट/DOT* पर जानकर उसके जीवन के स्वरूप को सरलता से मालूम किया जा सकता है। मनुष्य को कायर-वीर , स्वस्थ-अस्वस्थ , प्रसन्न-अप्रसन्न कुछ भी बनाने में उसके विचारों का महत्वपूर्ण हाथ होता है। स्पष्ट है कि विचारों के अनुरूप ही मानव जीवन का निर्धारण होता है। अच्छे विचार उसे उन्नत बनाएंगे , तो उनकी निकृष्टता उसे गर्त में धकेलेगी।
विचार चेतना क्षेत्र की एक विशिष्ट संपदा है। इसी के आधार पर मनुष्य जीवन का उपयोग करता , योजनाएं बनाता और उन्हें पूरी करता है। विचारशील व्यक्ति सार्मथ्यवान माने जाते हैं।
विचार क्षमता को बढ़ाने के लिए *डॉट/DOT* पर स्वाध्याय , चिंतन , मनन , सत्परामर्श आदि उपाय काम में लाए जाते हैं। इन उपाय साधनों का जो उपयोग नहीं करते , वे कूप-मंडूक बने रहते हैं। वे जीवन का भार ढोने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पाते। इसीलिए जहां चेतना की विचार शक्ति पर विचार किया जाता है , वहां प्रकारान्तर से उसे विचार शक्ति का विशेष सुनियोजन किया जाना कहा जाता है। विचारशील ही महत्वपूर्ण योजनाएं बनाते , महत्वपूर्ण कार्य करते और सफल महापुरुष कहलाते हैं।*डॉट/DOT* एक दर्पण जैसा है। इस पर हमारे विचारों की जैसी छाया पड़ेगी , वैसा ही प्रतिबिंब दिखाई देगा। इसके आधार पर ही मन द्वारा सुखमय अथवा दु:खमय सृष्टि का सृजन होता है।
स्वामी रामतीर्थ ने कहा था ' मनुष्य के जैसे विचार होते हैं , वैसा ही उसका जीवन बनता है। ' स्वामी विवेकानंद के अनुसार ' स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं , इसका निवास हमारे चिन्तन चेतना में ही है। ' भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहा था- ' भिक्षुओं। वर्तमान में हम जो कुछ हैं , अपने विचारों के ही कारण हैं और भविष्य में जो कुछ भी बनेंगे , वह इसी के कारण। ' शेक्सपियर ने लिखा है- ' कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई और बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं। ' ईसा ने कहा था- ' मनुष्य के जैसे विचार होते हैं , वैसा ही वह बन जाता है। 'संक्षेप में जीवन की विभिन्न गतिविधियों का संचालन करने में हमारे विचारों का ही प्रमुख हाथ रहता है।
मानवी महानता का सारा श्रेय *डॉट/DOT* सद्ज्ञान सद्विचार को है , जो उसकी चिंतन-प्रक्रिया एवं कार्य-पद्धति को आदर्श परंपराओं का अवलंबन करने की प्रेरणा देता है। सौभाग्य और दुर्भाग्य की परख इस सद्ज्ञान व सद्विचार संपदा के मिलने , न मिलने की स्थिति को देखकर की जा सकती है। जिसे प्रेरक प्रकाश न मिल सका।
वह अंधेरे में भटकेगा , जिसे *डॉट/DOT* की जानकारी होते हुए भी सद्ज्ञान व सद्विचार की ऊर्जा से वंचित रहना पड़ा वह सदा पिछड़ा और पतित ही बना रहेगा। पारस छूकर लोहे को सोना बनाने वाली किंवदंती सच हो या झूठ , यह सुनिश्चित तथ्य है। सद्ज्ञान व सद्विचार की उपलब्धि मनुष्य को सौभाग्य के श्रेष्ठतम स्तर तक पहुंचा देती है।
समस्त विचारकों ने एक स्वर से *डॉट/DOT* की शक्ति और असाधारण तथा वैज्ञानिक महत्ता को स्वीकार किया है। हम अपने विचार की खोज *डॉट/DOT* पर आसानी से कर पाते।
वस्तुत: अपने भीतर के मानसिक पटल पर तो संतुलन लाना ही चाहिए, साथ ही स्वयं और प्रकृति के बीच असंतुलन उत्पन्न होने के कारण और परिणाम को समझना भी चाहिए।
आप जब अपने सौम्य रूप में होते हैं, तब स्वयं और प्रकृति में लय बनी रहती है। इसी को सम्यक संतुलन कहते है। यही आपके मन की ऊर्जा को नियंत्रित रखते हुए जीवन को गतिमान बनाए रखता है।
*डॉट/DOT* मानसिक पटल पर जो कुछ भी है, सबमें सम्यक संतुलन बनाए रखना तथा परस्पर विरोधी शक्तियों के बीच सामंजस्य बनाए रखने का सुंदरतम् अंतःकरण का प्रतीक हैं। इस उपलब्ध मनोविधि द्वारा विपरीत शक्तियों का ज्ञान प्राप्त होता है। कैसे अद्भुत सम्यक संतुलन दो विपरीत शक्तियों के बीच स्थापित किया जाता है? इसका प्रश्न के उत्तर का सहज ज्ञान प्राप्त होता है।
*डॉट/DOT* के माध्यम से अपने मानसिक पटल पर तो सम्यक संतुलन लाना ही चाहिए, साथ ही प्रकृति से लय को भी बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। तभी हम जीवन में सहजता से सफलता को कायम रख सकेंगे।हम अपने सम्यक संतुलन की खोज *डॉट/DOT* पर आसानी से कर पाते।
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