मेरा मन:- एक परिचय और समीक्षा
इस लेख में, मन के दो प्रकार के अर्थों पर प्रकाश डाला गया है।
संज्ञानात्मक अर्थ में:- मन है तो मनुष्य कहलाते हैं। मनुष्य का मतलब है- मन + उष्य, संधि विच्छेद में उष्य का मूल वस है। वस का मतलब ग्रहण किया हुआ इस शब्द की उत्पत्ति की प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति ने मन को ग्रहण किया हुआ है इसलिए वह मनुष्य कहलाता है।
क्रियानात्मक अर्थ में:- मनुष्य के द्वारा ग्रहण मन का अपना ही गुण धर्म होता है। जैसे क्रियाशीलता ग्रहणशीलता चंचलता निरंतर गतिशीलता अनुकूलता स्थिरता संजना कार्य कारण और उपस्थिति के बोध को दर्शाता है।
संज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक अर्थातानुसार, मेरा मन है 'मैं हूं' की उपस्थिति का बोध स्पष्ट रूप से अनुभव में आता है मैं हूं व्यक्ति की उपस्थिति को दर्शाता है 'मैं हूं' मां की उपस्थिति की सत्यता को स्थापित करता है अर्थात व्यक्ति ने मां को ग्रहण किया हुआ है इस संज्ञान के साथ-साथ व्यक्ति मन का उपयोग करता हुआ क्रिया में गतिशीलता का बोध अनुभव में आता है। सार में, मेरा मन उपस्थिति और गतिशीलता का बोध कराता है।
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