स्वयं की खोज

प्र. मैं अपने को कैसे पता करें?

उ. आपको एक ऐसा तरीका खोजना चाहिए, जो आपको यह जाँचने मे मदद करे कि- "आप कौन है और आप क्यों अपनी सीमाओं को पकड़कर रखतें हैं?" 

यहाँ *डॉट/DOT* पर इसमें ध्यान, आत्मनिरीक्षण और आत्म-प्रतिबिंब सभी शामिल रहे हैं। जब आप एक बार अपने मन से *डॉट/DOT* के साथ जुड़ जाएंगे, तब आप यहाँ इस रास्ते पर अंत तक सफलता पाएंगे। अब आप विश्वस्त हो जाइए कि- आप अपनी जरूरतों का पता लगा सकते है और ज्ञान की एक यथार्थवादी दृष्टि खोल पाते है। "एक बार जब आप को सही रास्ता मिल जाएगा- जिसमे जीवन भर के साहसिक कार्यों की शुरुआत होगी।

आप स्वयं-संदेह का शिकार हो रहे है और आश्चर्य का सबब बनते हुए भी आप प्रगति कर रहे हैं, “तो यह एक वैध सवाल है।“ तब इस प्रश्न के जवाब के लिए है, आपको इस प्रश्न को इस नीचे सूची मे दिए गए तत्व, जो इसमे शामिल हैं, उनमे बांटने की जरूरत है:-

• क्या मैं अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में अपने आप पर शक कर रहा हूँ?

• क्या मुझे आपनी मान्यताओं से परेशानी है, जो मुझे सभी आध्यात्मिक चीजों से अलग करती हैं?                               • क्या मेरे पास कोई ऐसा सपना है, जिसके लिए मैं चिंतित हूँ?

• क्या मैं अपने सपने का पीछा कर रहा हूँ? 

• क्योंकि दूसरे लोग मुझसे कहते हैं कि- "मैं बहुत अच्छा नहीं हूँ और मैने ज्यादा सफलता हांसिल प्राप्त नहीं की है, क्या मैं इसलिए बहुत ज्यादा हतोत्साहित हूँ?

• क्या मेरे असंतोष के लिए बाहर के कारण जिम्मेदार हैं, जैसे- अत्यधिक काम और अत्यधिक तनाव, जिन्हे उपस्थायीन करने की जरूरत है? 

• क्या मैने उपयुक्त दोस्त और जिज्ञासु साथी पाए हैं, जो मेरे आध्यात्मिक जीवन मे लाभकारी हैं।

• क्या मेरी साधना का अभ्यास मुझे संतुष्ट करता है?

• यदि मैं ईमानदारी से अपने आप को देखूँ, तो क्या मैं उसके पश्चात पूरी तरह से सहज मानसिकता के समक्षता में  स्थित हो जाऊँगा?

•"क्या केवल आपके इन मुद्दों पर इतने अधिक और दृढ सोचने के बाद ही, आप यह जान पाए हैं, कि- आपका मन मानसिक अवस्था पर कहाँ स्थित हैं?" 

• क्या मेरे पास ऐसे शिक्षक या परामर्शदाता है, जिन पर मैं भरोसा कर सकूँ?

यह आपकी *डॉट/DOT* पर खुद की यात्रा है, तो आप इसके साथ किसी और की तुलना मत कीजिए। *डॉट/DOT* पर आपका आपना फैंसला है और उस समय आप अपनी ताकत या अपनी कमजोरियों को समझ सकते हैं। *डॉट/DOT* पर भावनाएं किसी भी दिए हुए क्षण पर, भ्रामक रूप से उच्च या कम हो सकती हैं। "क्यूं ना आप अपने लिए *डॉट/DOT* पर फैसला लेने वाले दिन एक छुट्टी ले ले?"  

प्र. *विश्वास* का रहस्य क्या है?

उ. व्यवहार में स्वयं को दूसरे के हाथों में अर्पित करना, अपने प्रेमी पर भरोसा कर उसे अपनी जिंदगी सौंप देना, श्रद्धा और सब्र रखना, प्रार्थना करना, दृढ़ संकल्प लेना, दिल से प्यार करना और तन-मन-धन से समर्पित होना- ये सब विश्वास के ही अलग-अलग रूप हैं। 

प्र.आपका मन कैसे स्वीकार करता है? 

उ.आपका प्रत्येक कर्म आपके जीवन को निर्धारित करता है और कर्म के मूल में 'विचार' उपस्थित होता है । इस प्रकार आपके विचार ही अंतत: आपका जीवन निर्धारित करते हैं।

हमारे मन में सदैव विश्वास जाग्रत होती रहती हैं। हम *स्व* से जो चाहते हैं वह भाव सदैव हमारे मन में बना रहता है। अत: हमारा यह भाव, हमारा इस प्रकार का संकल्प ही विश्वास है। 

प्र.हमारी इच्छाएं, विचार या भाव अथवा संकल्प कैसे हों? 

उ.यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। चूंकि विश्वास एक भाव है, अत: यह करने की वस्तु नहीं है, यह तो स्वत: ही घटित होती है। इसके लिए भाव को सुदृढ़ करने की जरूरत है। भाव प्रदूषण से बचने अर्थात विचार प्रक्रिया से अशुद्धता दूर करने या उसमें अशुद्धि नहीं आने देने की जरूरत है।

अत: विश्वास हो अथवा ऊर्जा का अन्य स्त्रोत- ये सभी हमारे मन की पैदा की गई स्थितियां हैं। मन की ये स्थितियां हमारी अपनी कल्पना भी हो सकती है और परिवेश के प्रभाव से उत्पन्न स्थितियां भी हो सकती हैं।

प्र. आपका विश्वास के प्रति क्या आवृत्ति है? इस पर पर आपका मन उसे कैसे स्वीकार करता है? 

उ.यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि:- विश्वास किसे कहते हैं। वह किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है? विश्वास में किस प्रकार की शक्तियां होती हैं?

अत: जीवन में भी विश्वास की आवश्यकता है। विश्वास को प्राप्त करने का पहला साधन *डॉट/DOT* है। व्यक्तिगत अनुभव और उससे उभरता भरोसा। यह भरोसा किसी वस्तु या व्यक्ति में भी हो सकता है। विश्वास रूपी गुण को उजागर करने से शक्तियों की अनुभूति होती है। ये शक्तियां मनुष्य को अनुशासित और धैर्यवान बनाती हैं। इन्हीं के बल पर वह इन्सान स्वयं के समीप पहुंचता है। 

अपनी सफलता के लिए इस प्रकार का दृढ़ विश्वास उत्पन्न हो जाता है, तो वे भी परीक्षा में अवश्य ही सफलता प्राप्त कर जीवन में आगे बढ़ते हैं। विश्वास के संबंध में एक और बात उल्लेखनीय है। असल में विश्वास का उद्गम हमारा मानसिक पटल पर मन स्थिति है। 

किंतु आपकी विश्वास के खोज की यात्रा तभी पूरी हो पाएगी या उनका यह प्रयास तभी सफल हो पाएगा जब आप अपनी आत्मा में बसे विश्वास को सचमुच पहचान पाएं। रोजमर्रा की अपनी जिंदगी की आपाधापी में हमारा सारा जीवन सांसारिक चिंताओं में निकल जाते है। 

हम अपने विश्वास की खोज *डॉट/DOT* आसानी से  कर पाते। 

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