मन और मानसिक अवस्था

प्र. मन की विशेषता क्या है?

उ. मन की विशेषता होती है कि वह आसानी से भौतिक वस्तुओं की विशेषताओं से तुलना कर लेता है। आपका मन घड़ी के पेंडुलम की तरह होता है। वह इधर से उधर और उधर से इधर होता रहता है। मन के विज्ञान के आधार पर ज्ञान और कला के द्वारा समझ प्राप्त कर सकते है।

आपके मानसिक स्तर पर दुविधा होने के कारण उतार-चढ़ाव का अनुभव होता है। मन की चंचलता और बैचेनी का मूल्यांकन हो सकता है।  आप जब मन के सहज मानसिक अवस्था मे होते है, तब  आपका आत्मविश्वास मजबूत होता है । आप मन पर काबू कर सहज हो जाते है। 

मन की सहज अवस्था ही औषधि है। यह जीवन को सुख-दुख को शांति और सद्‌भाव में बदल देती है। मन जब सहज होता है। तब यह बाहरी उत्तेजनाओं को समझ कर शरीर को उचित व्यवहार करने का आदेश देता है। 

प्र मन और मानसिक अवस्था को हवन कुण्ड की संज्ञा से क्यों अलंकृत किया गया है?

उ. यह बात तो हर कोई जानता है कि हवन कुन्ड में कुछ भी डालो, वह जलकर स्वाहा हो जाता है और अग्नि पवित्र बनी रहती है। इसके अलावा और भी हवन कुन्ड की कई खूबियां हैं। जैसे कि वह ऊष्णता देती है। कुन्ड में, अग्नि तपाती है, निखारती भी है, प्रकाश देती है और ऊंचाइयों की ओर अग्रसर होती है। इसी तरह, हवन कुन्ड सहज मानसिक अवस्था को तथा अग्नि मन इन्गित करता है।

सहज भी कुन्ड की तरह ही है। जितनी भी बुराइयां हैं सब उसमें जलकर भस्म हो जाती हैं। जिस प्रकार से  में तपने से सोना कुंदन बनकर निखर जाता है, ठीक उसी प्रकार मन की अग्नि से जीवन भी कुंदन बनता है। 

मन आपको बहुत शांति प्रदान करता है। आप मनस्थ होंगे, तो ज्यादा बात करने और जोर से बोलना नहीं करेगें। जब ज्यादा बात करते है, तब मानसिक पटल पर व्यर्थ की बातें ही आती हैं। इससे मन का भटकाव बढ़ता है। अगर ध्यान लगाते समय भी ऐसा हो तो इसका मतलब है कि कहीं हम कमजोर हैं। 

हमारा ध्यान अभी परिपक्व नहीं हुआ है।ध्यान आपको कभी ऐसे काम की ओर नहीं ले जाएगा जिससे कि आपको नीचा देखना पड़े। जब भी मौका मिले, *डॉट/DOT* पर ध्यान करें। ध्यान से शांति का अनुभव होता है। समय-समय पर बीच-बीच में *डॉट/DOT* पर ध्यान कर देखते रहें कि: 

प्र.१ कहीं हम मूल से छूट तो नहीं गये है? 

प्र.२ कहीं मन संकल्प-विकल्पों के जाल में तो नहीं फंस गया हैं? 

प्र.३ हम किस सेंटर से जुड़े हैं?

प्र. ४ हम कहां हैं?

मन को भटकने से बचाने के लिए जरूरी है कि जीवन को सहजमय रखा जाए।  नहीं तो वृत्तियां इतनी अद्भुत हैं कि वह आपको अपनी ओर खींचकर ले ही जाती हैं। यदि मन को सहज से जोड़ेंगे तो आप देखेंगे कि समस्याएं आएंगी लेकिन धीरे-धीरे उनका हल सूझने लगेगा। 

ध्यान लगाने से एक विचित्र बात हो जाती है। तब जैसे कोई आपके भीतर बैठ जाता है। आपके भीतर बैठ कर सारी समस्याओं का समाधान देने लगता है।आपको लगेगा भीतर कोई और है। मैं तो थक गया, मुझसे समाधान न हुआ लेकिन उससे आपको समाधान मिल जाएगा। 

संक्षेप में, मन एक अग्नि है। मन आपका जीवन संवारने वाली एक क्रिया है। उस व्यक्ति जिसके मन की लपट हमेशा ऊपर की ओर रहती है। 

अनुभव मे कई बार ऐसा होता है कि पुराने कर्म जोर लगाते हैं और व्यक्ति भटक जाता है। लेकिन मन का सहज में ध्यान लगाने वाला व्यक्ति या ध्यान से जुड़ा रहने वाला व्यक्ति भटक तो सकता है पर कहीं अटक नहीं सकता। उसमें भीतर से धीरे-धीरे जागृति आएगी और वह फिर चल पड़ेगा। जीवन में दिव्यता आती है और जब दिव्यता आती है तो व्यक्ति को यह सारी सृष्टि सुंदर प्रतीत होने लगती है। तब ऐसा व्यक्ति जीवन की समस्त बुराइयों से ऊपर उठ जाता है और इस संसार को सुंदर बनाने के कार्य में संलग्न हो जाता है। जब मन सहज भाव में *डॉट/DOT* पर स्थापित हो जाता है। तब जिंदगी की बेहद छोटी-छोटी बातें भी खूबसूरत बन जाती हैं। 

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